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मरते समय एक विचारशील व्यक्ति ने अपने जीवन के व्यर्थ ही चले जाने पर अफसोस प्रकट करते हुए कहा था-मैंने समय को नष्ट किया, अब समय मुझे नष्ट कर रहा है।’’ सचमुच, समय एक अनमोल वस्तु है| संसार में कोई भी वस्तु मिल सकती हैं, किन्तु खोया हुआ समय फिर हाथ नहीं आता| दुनिया में ऐसी कोई नहीं है जो गुजरे हुए घण्टों को फिर से बजा दे| समय के सदुपयोग पर ही हमारे जीवन की सफलता प्राय: निर्भर रहती है| वास्तव

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मैखाने मे आऊंगा मगर...
पिऊंगा नही साकी...
ये शराब मेरा गम मिटाने की औकात
नही रखती......

"खामोश बैठें तो लोग कहते हैं उदासी अच्छी नहीं, ज़रा सा हँस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं" !!

हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।....

तू होश में थी फिर भी हमें पहचान न पायी;
एक हम है कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे!

हजार जवाबों से अच्छी है खामोशी,
ना जाने कितने सवालों की आबरू रखती है !

"सूरज ढला तो
कद से ऊँचे हो गए साये,
कभी पैरों से रौंदी थी,
यहीं परछाइयां हमने..

काग़ज़ की कश्ती थी
पानी का किनारा था।
खेलने की मस्ती थी
ये दिल अवारा था।
कहाँ आ गए
इस समझदारी के दलदल में।
वो नादान बचपन भी
कितना प्यारा था ...!

जमीन छुपाने के लिए गगन होता है...
दिल छुपाने के लिए बदन होता है....
सायद मरने के बाद भी छुपाये जाते है गम....इस लिए हर लाश पे कफ़न होता है

मेरे लफ़्ज़ों से न कर
मेरे क़िरदार का फ़ैसला ll
तेरा वज़ूद मिट जायेगा
मेरी हकीक़त ढूंढ़ते ढूंढ़ते l

कबर की मिट्टी हाथ में लिए सोच रहा हूं,
लोग मरते हैं तो गुरूर कहाँ जाता है

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तुझे सूरज कहूं या चंदा तुझे दीप कहूं या तारा
मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा ।।

मैं कब से तरस रहा था, मेरे आंगन में कोई खेले
नन्‍हीं सी हंसी के बदले मेरी सारी दुनिया ले ले
तेरे संग झूल रहा है, मेरी बांहों में जग सारा
मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा ।।

आज उंगली थाम के तेरी तुझे मैं चलना सिखलाऊं
कल हाथ पकड़ना मेरा, जब मैं बूढ़ा हो जाऊं
तू मिला तो मैंने पाया, जीने का नया सहारा
मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा ।।

मेरे बाद भी इस दुनिया में, जिंदा मेरा नाम रहेगा
जो भी तुझको देखेगा, तुझे मेरा लाल कहेगा
तेरे रूप में मिल जाएगा, मुझको जीवन दोबारा
मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा ।।

तुझे सूरज कहूं या चंदा ।

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सात समंदर पार से गुडियों के बाज़ार से 
अच्‍छी सी गु‍डि़या लाना गुडिया चाहे ना लाना । 
पप्‍पा जल्‍दी आ जाना ।। 
तुम परदेस गये जब से, बस ये हाल हुआ तब से 
दिल दीवाना लगता है, घर वीराना लगता है 
झिलमिल चांद-सितारों ने, दरवाज़ों दीवारों ने 
सबने पूछा है हमसे, कब जी छूटेगा हमसे 
कब जी छूटेगा हमसे कब होगा उनका आना, 
पप्‍पा जल्‍दी आ जाना ।। 
मां भी लोरी नहीं गाती, हमको नींद नहीं आती 
खेल-खिलौने टूट गए, संगी-साथी छूट गये 
जेब हमारी ख़ाली है, और आती दीवाली है 
हम सबको ना तड़पाओ, अपने घर वापस आओ 
और कभी फिर ना जाना, 
पप्‍पा जल्‍दी आ जाना ।। 
ख़त ना समझो तार है ये, काग़ज़ नहीं है प्‍यार है ये 
दूरी और इतनी दूरी, ऐसी भी क्‍या मजबूरी 
तुम कोई नादान नहीं, तुम इससे अंजान नहीं 
इस जीवन के सपने हो, एक तुम्‍हीं तो अपने हो 
सारा जग है बेगाना, 
पप्‍पा जल्‍दी आ जाना ।।

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यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे 
कांधे पे अपने रखके अपना मज़ार गुज़रे 
बैठे हैं रास्‍ते में दिल का खंडहर सजाकर 
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे 
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे 
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे 
तूने भी हमको देखा, हमने भी तुझको देखा 
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे

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ओ हंसिनी मेरी हंसिनी 
कहां उड़ चली, मेरे अरमानों के पंख लगाके 
आजा मेरी सांसों में महक रहा रे तेरा गजरा 
आजा मेरी रातों में लहक रहा रे तेरा कजरा 
ओ हंसिनी ।। 
देर से लहरों में कमल संभाले हुए मन का 
जीवन ताल में भटक रहा रे तेरा हंसा 


ओ हंसिनी ।। 

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