Posted by Akhilesh jha in on 10:42
बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता।।
सब कुछ तो है क्या ढूंढती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यों नहीं जाता।।
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यों नहीं जाता।।
वो नाम जो बरसों से ना चेहरा है ना बदन है
वो ख्वाब अगर है तो बिखर क्यों नहीं जाता।।
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता।।
सब कुछ तो है क्या ढूंढती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यों नहीं जाता।।
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यों नहीं जाता।।
वो नाम जो बरसों से ना चेहरा है ना बदन है
वो ख्वाब अगर है तो बिखर क्यों नहीं जाता।।
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