ना कटूंगी, ना जलूंगी, ना मिटूंगी, ना मरूंगी 
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी 
जब तक दरिया में है पानी और आसमां नीला है 
जब तक सूरज तेज़ से चमके और अंधेरा काला है 
तब तक इस जहां का बनके प्राण रहूंगी 
मैं थी मैं हूं रहूंगी।। 

जिस पे टूट पड़ी सदियों से अरबों लहरें साग़र की 
मैं वो अविचल-शिला हूं हर आफत है जिसने झेली 
जीने की अविनाशी-चाह अंश बनूंगी  
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी