सांझ ढले गगन तले हम कितने एकाकी 
छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी 
पाती की जाली से झांक रही थीं कलियां 
गंध भरी गुनगुन में मगन हुई थीं कलियां 
इतने में तिमिर धंसा सपनीले नयनों में 
कलियों के आंसू का कोई नहीं साथी 
छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी 
सांझ ढले।। 
जुगनू का पट ओढ़े आयेगी रात अभी 
निशिगंधा के सुर में कह देगी बात सभी 
कांपता है मन जैसे डाली अंबुआ की 
छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी 
सांझ ढले।