मरते समय एक विचारशील व्यक्ति ने अपने जीवन के व्यर्थ ही चले जाने पर अफसोस प्रकट करते हुए कहा था-मैंने समय को नष्ट किया, अब समय मुझे नष्ट कर रहा है।’’ सचमुच, समय एक अनमोल वस्तु है| संसार में कोई भी वस्तु मिल सकती हैं, किन्तु खोया हुआ समय फिर हाथ नहीं आता| दुनिया में ऐसी कोई नहीं है जो गुजरे हुए घण्टों को फिर से बजा दे| समय के सदुपयोग पर ही हमारे जीवन की सफलता प्राय: निर्भर रहती है| वास्तव
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मैखाने मे आऊंगा मगर...
पिऊंगा नही साकी...
ये शराब मेरा गम मिटाने की औकात
नही रखती......
"खामोश बैठें तो लोग कहते हैं उदासी अच्छी नहीं, ज़रा सा हँस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं" !!
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।....
तू होश में थी फिर भी हमें पहचान न पायी;
एक हम है कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे!
हजार जवाबों से अच्छी है खामोशी,
ना जाने कितने सवालों की आबरू रखती है !
"सूरज ढला तो
कद से ऊँचे हो गए साये,
कभी पैरों से रौंदी थी,
यहीं परछाइयां हमने..
काग़ज़ की कश्ती थी
पानी का किनारा था।
खेलने की मस्ती थी
ये दिल अवारा था।
कहाँ आ गए
इस समझदारी के दलदल में।
वो नादान बचपन भी
कितना प्यारा था ...!
जमीन छुपाने के लिए गगन होता है...
दिल छुपाने के लिए बदन होता है....
सायद मरने के बाद भी छुपाये जाते है गम....इस लिए हर लाश पे कफ़न होता है
मेरे लफ़्ज़ों से न कर
मेरे क़िरदार का फ़ैसला ll
तेरा वज़ूद मिट जायेगा
मेरी हकीक़त ढूंढ़ते ढूंढ़ते l
कबर की मिट्टी हाथ में लिए सोच रहा हूं,
लोग मरते हैं तो गुरूर कहाँ जाता है
पिऊंगा नही साकी...
ये शराब मेरा गम मिटाने की औकात
नही रखती......
"खामोश बैठें तो लोग कहते हैं उदासी अच्छी नहीं, ज़रा सा हँस लें तो मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं" !!
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली।
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ।
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।।....
तू होश में थी फिर भी हमें पहचान न पायी;
एक हम है कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे!
हजार जवाबों से अच्छी है खामोशी,
ना जाने कितने सवालों की आबरू रखती है !
"सूरज ढला तो
कद से ऊँचे हो गए साये,
कभी पैरों से रौंदी थी,
यहीं परछाइयां हमने..
काग़ज़ की कश्ती थी
पानी का किनारा था।
खेलने की मस्ती थी
ये दिल अवारा था।
कहाँ आ गए
इस समझदारी के दलदल में।
वो नादान बचपन भी
कितना प्यारा था ...!
जमीन छुपाने के लिए गगन होता है...
दिल छुपाने के लिए बदन होता है....
सायद मरने के बाद भी छुपाये जाते है गम....इस लिए हर लाश पे कफ़न होता है
मेरे लफ़्ज़ों से न कर
मेरे क़िरदार का फ़ैसला ll
तेरा वज़ूद मिट जायेगा
मेरी हकीक़त ढूंढ़ते ढूंढ़ते l
कबर की मिट्टी हाथ में लिए सोच रहा हूं,
लोग मरते हैं तो गुरूर कहाँ जाता है
तुझे सूरज कहूं या चंदा तुझे दीप कहूं या तारा
मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा ।।
मैं कब से तरस रहा था, मेरे आंगन में कोई खेले
नन्हीं सी हंसी के बदले मेरी सारी दुनिया ले ले
तेरे संग झूल रहा है, मेरी बांहों में जग सारा
मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा ।।
आज उंगली थाम के तेरी तुझे मैं चलना सिखलाऊं
कल हाथ पकड़ना मेरा, जब मैं बूढ़ा हो जाऊं
तू मिला तो मैंने पाया, जीने का नया सहारा
मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा ।।
मेरे बाद भी इस दुनिया में, जिंदा मेरा नाम रहेगा
जो भी तुझको देखेगा, तुझे मेरा लाल कहेगा
तेरे रूप में मिल जाएगा, मुझको जीवन दोबारा
मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा ।।
तुझे सूरज कहूं या चंदा ।
मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा ।।
मैं कब से तरस रहा था, मेरे आंगन में कोई खेले
नन्हीं सी हंसी के बदले मेरी सारी दुनिया ले ले
तेरे संग झूल रहा है, मेरी बांहों में जग सारा
मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा ।।
आज उंगली थाम के तेरी तुझे मैं चलना सिखलाऊं
कल हाथ पकड़ना मेरा, जब मैं बूढ़ा हो जाऊं
तू मिला तो मैंने पाया, जीने का नया सहारा
मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा ।।
मेरे बाद भी इस दुनिया में, जिंदा मेरा नाम रहेगा
जो भी तुझको देखेगा, तुझे मेरा लाल कहेगा
तेरे रूप में मिल जाएगा, मुझको जीवन दोबारा
मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा ।।
तुझे सूरज कहूं या चंदा ।
सात समंदर पार से गुडियों के बाज़ार से
अच्छी सी गुडि़या लाना गुडिया चाहे ना लाना ।
पप्पा जल्दी आ जाना ।।
तुम परदेस गये जब से, बस ये हाल हुआ तब से
दिल दीवाना लगता है, घर वीराना लगता है
झिलमिल चांद-सितारों ने, दरवाज़ों दीवारों ने
सबने पूछा है हमसे, कब जी छूटेगा हमसे
कब जी छूटेगा हमसे कब होगा उनका आना,
पप्पा जल्दी आ जाना ।।
मां भी लोरी नहीं गाती, हमको नींद नहीं आती
खेल-खिलौने टूट गए, संगी-साथी छूट गये
जेब हमारी ख़ाली है, और आती दीवाली है
हम सबको ना तड़पाओ, अपने घर वापस आओ
और कभी फिर ना जाना,
पप्पा जल्दी आ जाना ।।
ख़त ना समझो तार है ये, काग़ज़ नहीं है प्यार है ये
दूरी और इतनी दूरी, ऐसी भी क्या मजबूरी
तुम कोई नादान नहीं, तुम इससे अंजान नहीं
इस जीवन के सपने हो, एक तुम्हीं तो अपने हो
सारा जग है बेगाना,
पप्पा जल्दी आ जाना ।।
अच्छी सी गुडि़या लाना गुडिया चाहे ना लाना ।
पप्पा जल्दी आ जाना ।।
तुम परदेस गये जब से, बस ये हाल हुआ तब से
दिल दीवाना लगता है, घर वीराना लगता है
झिलमिल चांद-सितारों ने, दरवाज़ों दीवारों ने
सबने पूछा है हमसे, कब जी छूटेगा हमसे
कब जी छूटेगा हमसे कब होगा उनका आना,
पप्पा जल्दी आ जाना ।।
मां भी लोरी नहीं गाती, हमको नींद नहीं आती
खेल-खिलौने टूट गए, संगी-साथी छूट गये
जेब हमारी ख़ाली है, और आती दीवाली है
हम सबको ना तड़पाओ, अपने घर वापस आओ
और कभी फिर ना जाना,
पप्पा जल्दी आ जाना ।।
ख़त ना समझो तार है ये, काग़ज़ नहीं है प्यार है ये
दूरी और इतनी दूरी, ऐसी भी क्या मजबूरी
तुम कोई नादान नहीं, तुम इससे अंजान नहीं
इस जीवन के सपने हो, एक तुम्हीं तो अपने हो
सारा जग है बेगाना,
पप्पा जल्दी आ जाना ।।
यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
कांधे पे अपने रखके अपना मज़ार गुज़रे
बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजाकर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तूने भी हमको देखा, हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे
कांधे पे अपने रखके अपना मज़ार गुज़रे
बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजाकर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तूने भी हमको देखा, हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे
ओ हंसिनी मेरी हंसिनी
कहां उड़ चली, मेरे अरमानों के पंख लगाके
आजा मेरी सांसों में महक रहा रे तेरा गजरा
आजा मेरी रातों में लहक रहा रे तेरा कजरा
ओ हंसिनी ।।
देर से लहरों में कमल संभाले हुए मन का
जीवन ताल में भटक रहा रे तेरा हंसा
ओ हंसिनी ।।
कहां उड़ चली, मेरे अरमानों के पंख लगाके
आजा मेरी सांसों में महक रहा रे तेरा गजरा
आजा मेरी रातों में लहक रहा रे तेरा कजरा
ओ हंसिनी ।।
देर से लहरों में कमल संभाले हुए मन का
जीवन ताल में भटक रहा रे तेरा हंसा
ओ हंसिनी ।।
तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे
मुहब्बत की राहों में संग-संग चले थे
भुला दो मुहब्बत में हम-तुम मिले थे
सपना ही समझो कि मिल के चले थे ।
भुला दो मुहब्बत में हम-तुम मिले थे
सपना ही समझो कि मिल के चले थे ।
सहारा है यादों का तन्हाईयों में
कहीं और दिल की दुनिया बसा लो
क़सम है तुम्हें वो क़सम तोड़ डालो
तुम्हें याद होगा ।।
अगर जिंदगी हो अपने ही बस में
तुम्हारी क़सम ना भूलें वो क़स्में
तुम्हें याद होगा ।।
लो अपना जहां दुनिया वालो
हम इस दुनिया को छोड़ चले
जो रिश्ते-नाते जोड़े थे
वो रिश्ते-नाते तोड़ चले
कुछ सुख के सपने देख चले
कुछ दुख के सदमे झेल चले
तक़दीर की अंधी गर्दिश ने
जो खेल खिलाए खेल चले
ये राह अकेले कटती है
यहां साथ ना कोई यार चले
उस पर ना जाने क्या पाएं
इस पार तो सब कुछ हार चले
हम इस दुनिया को छोड़ चले
जो रिश्ते-नाते जोड़े थे
वो रिश्ते-नाते तोड़ चले
कुछ सुख के सपने देख चले
कुछ दुख के सदमे झेल चले
तक़दीर की अंधी गर्दिश ने
जो खेल खिलाए खेल चले
ये राह अकेले कटती है
यहां साथ ना कोई यार चले
उस पर ना जाने क्या पाएं
इस पार तो सब कुछ हार चले
ये रातें ये मौसम ये हंसना हंसाना
मुझे भूल जाना इन्हें ना भुलाना
ये बहकी निगाहें ये बहकी अदाएं
ये आंखों के काजल में डूबी घटाएं
फिज़ा के लबों पर ये चुप का फसाना
मुझे भूल जाना इन्हें ना भुलाना
चमन में जो मिलके बनी है कहानी
हमारी मुहब्बत तुम्हारी जवानी
ये दो गर्म सांसों का इक साथ आना
ये बदली का चलना ये बूंदों की रूमझुम
ये मस्ती का आलम ये खोए से हम-तुम
तुम्हारा मेरे साथ ये गुनगुनाना
मुझे भूल जाना, इन्हें ना भुलाना ।।
मुझे भूल जाना इन्हें ना भुलाना
ये बहकी निगाहें ये बहकी अदाएं
ये आंखों के काजल में डूबी घटाएं
फिज़ा के लबों पर ये चुप का फसाना
मुझे भूल जाना इन्हें ना भुलाना
चमन में जो मिलके बनी है कहानी
हमारी मुहब्बत तुम्हारी जवानी
ये दो गर्म सांसों का इक साथ आना
ये बदली का चलना ये बूंदों की रूमझुम
ये मस्ती का आलम ये खोए से हम-तुम
तुम्हारा मेरे साथ ये गुनगुनाना
मुझे भूल जाना, इन्हें ना भुलाना ।।
सांझ ढले गगन तले हम कितने एकाकी
छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी
पाती की जाली से झांक रही थीं कलियां
गंध भरी गुनगुन में मगन हुई थीं कलियां
इतने में तिमिर धंसा सपनीले नयनों में
कलियों के आंसू का कोई नहीं साथी
छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी
सांझ ढले।।
जुगनू का पट ओढ़े आयेगी रात अभी
निशिगंधा के सुर में कह देगी बात सभी
कांपता है मन जैसे डाली अंबुआ की
छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी
सांझ ढले।
छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी
पाती की जाली से झांक रही थीं कलियां
गंध भरी गुनगुन में मगन हुई थीं कलियां
इतने में तिमिर धंसा सपनीले नयनों में
कलियों के आंसू का कोई नहीं साथी
छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी
सांझ ढले।।
जुगनू का पट ओढ़े आयेगी रात अभी
निशिगंधा के सुर में कह देगी बात सभी
कांपता है मन जैसे डाली अंबुआ की
छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी
सांझ ढले।
हर घड़ी ढल रही शाम है जिंदगी
दर्द का दूसरा नाम है जिंदगी
आसमां है वहीं और वही है ज़मीं
है मकां ग़ैर का...ग़ैर है या हमीं
अजनबी आंख सी आज है जिंदगी
दर्द का दूसरा नाम है जिंदगी।।
क्यों खड़े रहा में, राह भी सो गई
अपनी तो छांह भी, अपने से खो गई
भटके हुए पंछी की रात है जिंदगी
दर्द का दूसरा नाम है जिंदगी।।
दर्द का दूसरा नाम है जिंदगी
आसमां है वहीं और वही है ज़मीं
है मकां ग़ैर का...ग़ैर है या हमीं
अजनबी आंख सी आज है जिंदगी
दर्द का दूसरा नाम है जिंदगी।।
क्यों खड़े रहा में, राह भी सो गई
अपनी तो छांह भी, अपने से खो गई
भटके हुए पंछी की रात है जिंदगी
दर्द का दूसरा नाम है जिंदगी।।
'यार किशन ये हद्द हो गयी
यारों की तो भद्द हो गयी
सिर्फ़ अहसान ही बाक़ी रह गये
दोस्ती यारी रद्द हो गयी
प्यार में दुनियादारी कैसी
मुफ्त की चीज़ नगद हो गयी है
छी छी यार की ये पहचान
दोस्ती में कैसा अहसान
जब दोस्ती होती है तो.........'
अहसान नहीं होता..
जब दोस्ती होती है तो दोस्ती होती है
और दोस्तों में कोई अहसान नहीं होता।
जल बिन तड़पत मछली जैसे नल बिन तरपत पानी
और हाथ पानी बिना चलते....अस्नान नहीं होता।।
ये पांचों की पंचायत, जो सोचे सही होगा
हम पांडव हैं भारत के, जो कह दें वही होगा
ओए जम के एक जमा दूं....दूध का दही होगा
मीरा के प्रभु कहत कबीरा, जीवन काज कदम कश्तीरा
खात कष्ट बिना ये जीवन, आसान नहीं होता।।
जब दोस्ती होती है तो....
उंगली से ढीली का जब तक
जोड़ सलामत ..थाह सलामत
छोटी और बड़ी हैं तो क्या
यारों की तो भद्द हो गयी
सिर्फ़ अहसान ही बाक़ी रह गये
दोस्ती यारी रद्द हो गयी
प्यार में दुनियादारी कैसी
मुफ्त की चीज़ नगद हो गयी है
छी छी यार की ये पहचान
दोस्ती में कैसा अहसान
जब दोस्ती होती है तो.........'
अहसान नहीं होता..
जब दोस्ती होती है तो दोस्ती होती है
और दोस्तों में कोई अहसान नहीं होता।
जल बिन तड़पत मछली जैसे नल बिन तरपत पानी
और हाथ पानी बिना चलते....अस्नान नहीं होता।।
ये पांचों की पंचायत, जो सोचे सही होगा
हम पांडव हैं भारत के, जो कह दें वही होगा
ओए जम के एक जमा दूं....दूध का दही होगा
मीरा के प्रभु कहत कबीरा, जीवन काज कदम कश्तीरा
खात कष्ट बिना ये जीवन, आसान नहीं होता।।
जब दोस्ती होती है तो....
उंगली से ढीली का जब तक
जोड़ सलामत ..थाह सलामत
छोटी और बड़ी हैं तो क्या
पांचों है तो हाथ सलामत
एक एक के हैं पांच मुक़द्दर
तकलीफ़ों से घबराना मत
सांझे जोड़ जवानी बचपन
पांच से पांच मिले तो पचपन
पांचों साथ आए तो....
नुकसान नहीं होता....
जब दोस्ती होती है तो दोस्ती है
और दोस्तों में कोई अहसान नहीं होता।।
ना कटूंगी, ना जलूंगी, ना मिटूंगी, ना मरूंगी
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी
जब तक दरिया में है पानी और आसमां नीला है
जब तक सूरज तेज़ से चमके और अंधेरा काला है
तब तक इस जहां का बनके प्राण रहूंगी
मैं थी मैं हूं रहूंगी।।
जिस पे टूट पड़ी सदियों से अरबों लहरें साग़र की
मैं वो अविचल-शिला हूं हर आफत है जिसने झेली
जीने की अविनाशी-चाह अंश बनूंगी
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी
जब तक दरिया में है पानी और आसमां नीला है
जब तक सूरज तेज़ से चमके और अंधेरा काला है
तब तक इस जहां का बनके प्राण रहूंगी
मैं थी मैं हूं रहूंगी।।
जिस पे टूट पड़ी सदियों से अरबों लहरें साग़र की
मैं वो अविचल-शिला हूं हर आफत है जिसने झेली
जीने की अविनाशी-चाह अंश बनूंगी
मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी
कहता है कौन मेरी तबियत उदास है
समझेगा कौन उसकी जुदाई भी रास है
आंखों में शक्ल सांसों में ज़ुल्फों की है महक
वो दूर जा चुका है मगर मेरे पास है
नये घड़े के पानी से जब मीठी खुश्बू आती है
यूं लगता है जैसे मुझको तेरी खुश्बू आती है
कितने ही युग बीत गये हैं उसको अपने गांव गये
आज भी मेरे कमरे से, मेंहदी की खुश्बू आती है
लोग जिसे पत्थर कहते हैं, मैंने उसको फूल कहा
जिसने जैसा उसको वैसी खुश्बू आती है
वो बचपन, वो सावन के दिन, वो झूले, वो आम के पेड़
भूली-बिसरी उन यादों की आज भी खुश्बू आती है
बारिश का मौसम जब आये, दिल में आग लगाये 'नसीम'
मुझको हर भीगे झोंके से, उसकी खुश्बू आती है
समझेगा कौन उसकी जुदाई भी रास है
आंखों में शक्ल सांसों में ज़ुल्फों की है महक
वो दूर जा चुका है मगर मेरे पास है
नये घड़े के पानी से जब मीठी खुश्बू आती है
यूं लगता है जैसे मुझको तेरी खुश्बू आती है
कितने ही युग बीत गये हैं उसको अपने गांव गये
आज भी मेरे कमरे से, मेंहदी की खुश्बू आती है
लोग जिसे पत्थर कहते हैं, मैंने उसको फूल कहा
जिसने जैसा उसको वैसी खुश्बू आती है
वो बचपन, वो सावन के दिन, वो झूले, वो आम के पेड़
भूली-बिसरी उन यादों की आज भी खुश्बू आती है
बारिश का मौसम जब आये, दिल में आग लगाये 'नसीम'
मुझको हर भीगे झोंके से, उसकी खुश्बू आती है
मुंह की बात सुने हर कोई दिल का दर्द जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन
सदियों-सदियों वही तमाशा, रस्ता-रस्ता लंबी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं खो जाता है जाने कौन।।
वो मेरा आईना है, मैं उसकी परछाईं हूं
मेरे ही घर में रहता है, मुझ जैसा ही जाने कौन।।
किरन-किरन अलसाता सूरज, पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है, ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन।।
लेकिन जब हम मिल जाते हैं खो जाता है जाने कौन।।
वो मेरा आईना है, मैं उसकी परछाईं हूं
मेरे ही घर में रहता है, मुझ जैसा ही जाने कौन।।
किरन-किरन अलसाता सूरज, पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है, ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन।।
मैं रोया परदसे में भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार।।
सीता-रावण-राम का करें विभाजन लोग
एक ही तन में देखिए तीनों का संजोग
बच्चा बोला देखकर मस्जिद आलीशान
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान।
सीधा-सादा डाकिया जादू करे महान
एक ही थैले में भरे आंसू और मुस्कान
सबकी पूजा एक-सी, अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत।।
बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता।।
सब कुछ तो है क्या ढूंढती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यों नहीं जाता।।
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यों नहीं जाता।।
वो नाम जो बरसों से ना चेहरा है ना बदन है
वो ख्वाब अगर है तो बिखर क्यों नहीं जाता।।
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता।।
सब कुछ तो है क्या ढूंढती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यों नहीं जाता।।
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यों नहीं जाता।।
वो नाम जो बरसों से ना चेहरा है ना बदन है
वो ख्वाब अगर है तो बिखर क्यों नहीं जाता।।
खुले गगन पे झुक गयी, किसी की सुरमई पलक
किसी की लट बिखर गयी, घिरी घटा जहां तलक
धुली हवा में घुल गयी, किसी की सांस की महक
किसी का प्यार आज बूंद-बूंद से गया छलक
सावन की रिमझिम में थिरक-थिरक नाचे रे मयूर पंखी रे सपने
कजरारी पलक झुकी रे, घिर गयी घटायें
चूडियां बजाने लगीं रे, सावनी हवाएं
माथे की बिंदिया, जो घुंघटा से झांके
चमके बिजुरिया, कहीं झिलमिलाके
बूंदों के घुंघरू झनका के रे।
सावन की रिमझिम में।।
छलक गयीं नीलगगन से रसभरी फुहारें
महक उठीं तेरे बदन सी भीगती बहारें
रिमझिम फुहारों के रस में नहाके
सिमटी है फिर मेरी बांहों में आके
सपनों की दुलहन शर्मा के हो।
सावन की रिमझिम में।।
किसी की लट बिखर गयी, घिरी घटा जहां तलक
धुली हवा में घुल गयी, किसी की सांस की महक
किसी का प्यार आज बूंद-बूंद से गया छलक
सावन की रिमझिम में थिरक-थिरक नाचे रे मयूर पंखी रे सपने
कजरारी पलक झुकी रे, घिर गयी घटायें
चूडियां बजाने लगीं रे, सावनी हवाएं
माथे की बिंदिया, जो घुंघटा से झांके
चमके बिजुरिया, कहीं झिलमिलाके
बूंदों के घुंघरू झनका के रे।
सावन की रिमझिम में।।
छलक गयीं नीलगगन से रसभरी फुहारें
महक उठीं तेरे बदन सी भीगती बहारें
रिमझिम फुहारों के रस में नहाके
सिमटी है फिर मेरी बांहों में आके
सपनों की दुलहन शर्मा के हो।
सावन की रिमझिम में।।
तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा
दीन जिनको, जिन्हें ईमान बनाए रखा
तेरे खुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह
याद थे मुझको जो पैग़ाम-ए-जुबानी की तरह
मुझको प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह
तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे
साल-हा-साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात को उठकर लिखे
तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूं
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूं।
जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ हर साँस पे जीता हूँ हर साँस पे मरता हूँ. जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ मेरा तुमसे प्यार करना जीना तो नहीं क्यों...
काश ये रात न आए,
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- कहता है कौन मेरी तबियत उदास है समझेगा कौन उसकी जु...
- मुंह की बात सुने हर कोई दिल का दर्द जाने कौन आव...
- मैं रोया परदसे में भीगा मां का प्यार दुख ने ...
- बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता जो बीत गया ...
- खुले गगन पे झुक गयी, किसी की सुरमई पलक किसी की लट...
- तेरे ख़ुश्बू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे प्यार...
- जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ हर साँस पे जीता हूँ ह...
- काश ये रात न आए, दिन निकले, सुबह हो जाए.... ...
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July
(22)